हम सच बोलते हैं तो हमें लगता है कि हमारी शक्ति का असर होना चाहिए.
लेकिन जब हम अधूरे सच या झूठ बोलनेवालों की शक्ति का असर ज्यादा होता हुआ पाते हैं तो माथा ठनकता है कि ऐसा क्यों हो रहा है.
पता चलता है कि सच बोलने से ही काम नहीं चलेगा.
अगर हम चाहते हैं कि सच को ज्यादा लोग सच समझें भी और सच को समझकर उसके अनुसार आचरण भी करें, तो सच के व्यापक प्रचार के साधनों का इस्तेमाल भी करना पड़ेगा.......
(लेकिन) पता चलता है कि प्रचार के साधन उनके पास ज्यादा हैं, जिन्हें आधे सच का प्रचार करना है....
--रघुवीर सहाय
---------------------------------------------------------------------लेकिन जब हम अधूरे सच या झूठ बोलनेवालों की शक्ति का असर ज्यादा होता हुआ पाते हैं तो माथा ठनकता है कि ऐसा क्यों हो रहा है.
पता चलता है कि सच बोलने से ही काम नहीं चलेगा.
अगर हम चाहते हैं कि सच को ज्यादा लोग सच समझें भी और सच को समझकर उसके अनुसार आचरण भी करें, तो सच के व्यापक प्रचार के साधनों का इस्तेमाल भी करना पड़ेगा.......
(लेकिन) पता चलता है कि प्रचार के साधन उनके पास ज्यादा हैं, जिन्हें आधे सच का प्रचार करना है....
--रघुवीर सहाय
’’सत्य को जानो, वह तुम्हें मुक्त करेगा’’ - इस पुरानी अमरीकी कहावत को दुहराते हुए हमारा प्रेस कहता है कि वह सच्चाई और सिर्फ सच्चाई से प्रतिबद्ध है.
......वह सत्य क्या है? इस सत्य का कोई मकसद- उसकी कोई दिशा होती है या नहीं? उसका समाज के विकास में और इस विकास के रथ को आगे बढ़ानेवाली सामाजिक शक्तियों के उत्थान में कोई योगदान है या नहीं?
सत्य के दायरे में सामाजिक आलोचना की कोई जगह है या नहीं? और अगर इसके लिए जगह है तो आदमी को विचारवान बनाने में उसकी कोई भूमिका होगी या नहीं???
--महेश्वर
......वह सत्य क्या है? इस सत्य का कोई मकसद- उसकी कोई दिशा होती है या नहीं? उसका समाज के विकास में और इस विकास के रथ को आगे बढ़ानेवाली सामाजिक शक्तियों के उत्थान में कोई योगदान है या नहीं?
सत्य के दायरे में सामाजिक आलोचना की कोई जगह है या नहीं? और अगर इसके लिए जगह है तो आदमी को विचारवान बनाने में उसकी कोई भूमिका होगी या नहीं???
--महेश्वर
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