Saturday, December 19, 2009
रणेन्द्र का उपन्यास- ग्लोबल गांव के देवता
विष्णु राजगढ़िया
भारतीय ज्ञानपीठ ने इसी महीने रणेंद्र का उपन्यास प्रकाशित किया है- ग्लोबल गांव के देवता। सिंगूर, लालगढ़, सलवा जुड़ुम और आपरेशन ग्रीन हंट के इस दौर में यह उपन्यास आधुनिक भारत में जनजातियों के लिए उत्पन्न अस्तित्व-मात्र के संकट के साथ ही जनप्रतिरोध की विविध धाराओं के उदय एवं उनकी जटिलताओं की सांकेतिक रूपों में महत्वपूर्ण प्रस्तुति करता है। ग्लोबल देवताओं को खनिज की भूख है और उनकी भूख मिटाने के लिए जनजातियों को जमीन से बेदखल करना जरूरी है। भारत सरकार को भी जनजातियों से ज्यादा जरूरी भेड़िये को बचाना है। आदिवासियों के विस्थापन और इसके खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध से लेकर हिंसक प्रतिरोध तक की स्थितियों को सामने लाने के लिए रणेन्द्र ने असुर जनजाति को केंद्र में रखा है। आग और धातु की खोज करने वाली] धातु को पिघलाकर उसे आकार देने वाली कारीगर असुर जाति को मानव सभ्यता के विकासक्रम में हाशिये पर धकेल दिये जाने और अब अंततः पूरी तरह विस्थापित करके अस्तित्व ही मिटा डालने की साजिश इस उपन्यास में सामने आती है।
इस उपन्यास के लिए भाई रणेन्द्र को बधाई। आप भी उन्हें 094313-91171 नंबर पर बधाई दे सकते हैं।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Thanks for introducing the book. I am interested to read it.
ReplyDeleteJagdish Singh
thanks for introduce this book for us
ReplyDelete